Saturday, October 30, 2010

भारत माँ के चरणों में

भारत माँ के चरणों में शीश झुकता है मेरा,
जब भी छूता हूँ मिटटी अपने आँगन की,
वो बचपन के रेले, वो त्यौहार वो मेले,
वो दौड़ना खुले आकाश में, वो खेलना नदी किनारे,
वो माँ का आवाज लगाना, और मेरा फिर घर देर से पहुचना,
वो टीचर का डांटना, वो दोस्तों का सताना,
याद आती है मुझे मेरे देश की, अब हर पल बेक़रार रहता हूँ,
की छू लूं उस देश की मिटटी फिर से, और लगा लूं अपने माथे से,
और फिर खेलूँ उस खुले आँगन में, अब हर पल बेक़रार रहता हूँ.....

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