Saturday, October 30, 2010

भारत माँ के चरणों में

भारत माँ के चरणों में शीश झुकता है मेरा,
जब भी छूता हूँ मिटटी अपने आँगन की,
वो बचपन के रेले, वो त्यौहार वो मेले,
वो दौड़ना खुले आकाश में, वो खेलना नदी किनारे,
वो माँ का आवाज लगाना, और मेरा फिर घर देर से पहुचना,
वो टीचर का डांटना, वो दोस्तों का सताना,
याद आती है मुझे मेरे देश की, अब हर पल बेक़रार रहता हूँ,
की छू लूं उस देश की मिटटी फिर से, और लगा लूं अपने माथे से,
और फिर खेलूँ उस खुले आँगन में, अब हर पल बेक़रार रहता हूँ.....

नयन डरे डरे ये

नयन डरे डरे ये, होंठ कुछ खामोश से हैं,
कई दिनों से सीने में दर्द का आलम है मेरे,
मेरी आदतों ने मुश्किल से छोड़ा था मुझे,
अब तो परदे में रहता है सितम और दुनिया का खाली आँगन कोई,
चले थे यारों के साथ जीतने दुनिया कभी,
अब डर सा लगता है इस दुनिया के अंधेरों में कोई,
न जाने किस डोर से बंधा है ये दामन,
ये आकाश से गिरती बिजलियाँ, येआग से लपटी चिंगारियां,
ये धुवाँ कुछ अनकही बातों का आज आगोश में है मेरे,
मेरे साथ बस तेरी यादों का सहारा भर है....


आज बहुत देर से राहें

आज बहुत देर से राहें खामोश पड़ी हैं,
तेरे आने की दस्तक दिल को झकझोर रही है।
मेरे नयन यूँ देख रहे हैं तेरे आने की राह,
और धडकनों में एक चुभन सी बेक़रार है।
सपनों ने सोने न दिया, और तेरी याद ने जागने न दिया,
हर वक़्त मेरी तन्हाई ने मेरा इम्तिहान लिया,
तेरे जाने की खबर से पसीज गया था दिल यह नादान,
तेरे आने की खबर ने फिर जिंदगी में भरोसा दिया,
अब आ भी जाओ साजन, यूँ प्यार का इम्तिहान न लो,
इस बेचैन दिल को थोडा सा करार मिले,
अब आ भी जाओ की मेरी इस बंजर जमीन में भी,
प्यार के खूबसूरत से कुछ फूल खिलें......