Saturday, October 30, 2010

नयन डरे डरे ये

नयन डरे डरे ये, होंठ कुछ खामोश से हैं,
कई दिनों से सीने में दर्द का आलम है मेरे,
मेरी आदतों ने मुश्किल से छोड़ा था मुझे,
अब तो परदे में रहता है सितम और दुनिया का खाली आँगन कोई,
चले थे यारों के साथ जीतने दुनिया कभी,
अब डर सा लगता है इस दुनिया के अंधेरों में कोई,
न जाने किस डोर से बंधा है ये दामन,
ये आकाश से गिरती बिजलियाँ, येआग से लपटी चिंगारियां,
ये धुवाँ कुछ अनकही बातों का आज आगोश में है मेरे,
मेरे साथ बस तेरी यादों का सहारा भर है....


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